जब भी चाहूँ ,कर लेता हूँ अपने मन की !
वाह ...बहुत बढि़या।
नीलकंठ ने विष पिया, लगी बदन में आग |गंग-चन्द्र तन भस्म है, गले में डाला नाग |गले में डाला नाग, हुए कैलाश निवासी |मना रहे आनंद, बने है घट घट वासी |पर शंकर परिवार, ठंड से कांप रहा है |पड़ी जलानी आग, गणेशा ताप रहा है ||
वाह जी वाह,,,,बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,,,RECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,
मित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल | पैदल ही आ जाइए, महंगा है पेट्रोल || -- बुधवारीय चर्चा मंच ।
very good drawing...:-)
nice ;)
वाह ...बहुत बढि़या।
जवाब देंहटाएंनीलकंठ ने विष पिया, लगी बदन में आग |
जवाब देंहटाएंगंग-चन्द्र तन भस्म है, गले में डाला नाग |
गले में डाला नाग, हुए कैलाश निवासी |
मना रहे आनंद, बने है घट घट वासी |
पर शंकर परिवार, ठंड से कांप रहा है |
पड़ी जलानी आग, गणेशा ताप रहा है ||
वाह जी वाह,,,,बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,
मित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
जवाब देंहटाएंपैदल ही आ जाइए, महंगा है पेट्रोल ||
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